भारत में अब फास्टैग वाले टोल सिस्टम के बंद होने की बारी आ गई है और जल्द ही भारत की सड़कों पर एक नई टेक्नोलॉजी अपना कमाल दिखाने वाली है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने घोषणा की है की भारत के कुछ राष्ट्रीय राजमार्गों पर मई 2025 से सैटेलाइट आधारित टोल सिस्टम को लागू किया जायेगा और इससे लोगों को काफी लाभ मिलेगा।
शुरुआत में कुछ चुनिंदा राजमार्गों पर इसका इस्तेमाल किया जायेगा जो की मौजूदा समय में फास्टैग वाले सिस्टम को रिप्लेस करने वाला है। ये सिस्टम कैसे काम करने वाला है और इस सिस्टम से लोगों को क्या क्या लाभ मिलेगा आइये इसको डिटेल में जानते है।
आखिर सैटेलाइट टोल सिस्टम कैसे काम करता है?
पुरे भारत के कुछ राजमार्गों पर लागु होने वाली इस नई टेक्नोलॉजी को सैटेलाइट आधारित टोल सिस्टम या फिर GNSS (Global Navigation Satellite System) टोलिंग के नाम से जाना जाता है और दुनिया के कई देशों में ये बहुत सालों से काम कर रही है। ये सिस्ट भारत में काम करने के लिए भारत के स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NavIC और GAGAN के साथ-साथ GPS तकनीक का उपयोग करेगा और इसके जरिये टोल की वसूली की जायेगी।
इस नई तकनीक के तहत राजमार्गों पर टोल प्लाजा का निर्माण करने की बजाय कुछ टोल पॉइंट्स का निर्माण किया जाता है और यहां लगे ANPR (Automatic Number Plate Recognition) कैमरों के माध्यम से और सैटेलाइट के उपयोग से गाड़ियों की पहचान की जाती है। इसके अलावा गाड़ी चालकों को केवल दुरी के हिसाब से ही टोल देना होता है। कुछ नियमों के तहत इसमें 20 किलोमीटर तक की यात्रा मुफ्त भी हो सकती है।
सैटेलाइट टोल सिस्टम के तहत ही गाड़ियों में भी ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) लगाई जाती है कको की एक प्रकार की ट्रैकिंग डिवाइस होती है और ये सैटेलाइट के साथ में जुडी हुई होती है। इसके जरिये पता चलता रहता है की गाड़ी ने कितना सफल राजमार्ग पर किया है और उसकी दूसरी के हिसाब से वाहन मालिक से टोल लिया जाता है।
अगर कोई गाड़ी मालिक बिना ऑन-बोर्ड यूनिट के सफर करता पाया जाता है तो उससे दोगुना टोल वसूली करने के नियम भी इसमें लागु किये जा सकते है। इसके अलावा टोल का भुगतान वाहन के मालिक के बैंक खाते से ही सीधे चुकता होता है।
टोल टैक्स की दरों में आ सकती है कमी
भारत में आने वाले समय में लागु होने वाली इस नई टेक्नोलॉजी को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का भी एक बयान सामने आया है जिसमे उन्होंने इस सिस्टम को “भविष्य की तकनीक” करार देते हुए कहा, “यह सिस्टम न केवल समय और ईंधन की बचत करेगा, बल्कि टोल संग्रह को और अधिक पारदर्शी बनाएगा।”
यदि ये तकनीत भारत में लागु होती है तो इससे भाaरत के टोल प्लाजा पर अक्सर देखे जाने वाले लम्बे लम्बे जाम से लोगों को निजात मिलेगी। इसके अलावा आपको केवल उतने ही किलोमीटर का टोल देना होगा जितना आपने हाईवे का इस्तेमाल किया है। इस सिस्टम के लागु होने के बाद में टोल टैक्स की दरों में भी कमी आ सकती है क्योंकि इस सिस्टम के आने के कारण मौजूदा टोल प्लाजा के निर्माण और रखरखाव पर का खर्चा कम हो जायेगा।
क्या चुनौतियां आ सकती है इसके लागु होने से
भारत में अभी ये तकनीक नई है और अभी इसके ट्रायल शुरू होने जा रहे है लेकिन इसके लागु होने से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि खराब मौसम, ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर सैटेलाइट सिग्नल और लोगों की प्राइवेसी की समस्या आ सकती है। ये तकनीक सभी गाड़ियों की लोकेशन को हर समय ट्रैक करेगी जिससे लोगों की प्राइवेसी में दिक्कत पैदा होने की समस्या आ सकती है। इसके अलावा सभी गाड़ियों में OBU इंस्टॉल करने में समय और लागत लगेगी तो क्या सरकार इसका खर्चा वहन करेगी ये भी सोचने वाली बात है।
जर्मनी, बेल्जियम, और रूस जैसे देशों में यह प्रणाली पहले से सफलतापूर्वक काम कर रही है और भारत के कुछ चुनिंदा हाईवे और एक्सप्रेसवे, जैसे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और चेन्नई-बेंगलुरु कॉरिडोर पर इसका ट्रायल शुरू किया जायेगा। इसको मौजूदा फास्टैग सिस्टम के साथ में ही ट्रायल किया जाने वाला है। सरकार ने अपने पायलट प्रोजेक्ट को इस तकनीक के पूर्ण रूप से इस्तेमाल के लिए मैदान में उतारा हुआ है और जल्द ही इसके ट्रायल ख़त्म होने के बाद में देशभर में इसको लागु किया जायेगा।